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।। ओ३म् ।। मनोमयः प्राणशरीरनेता प्रतिष्ठितोऽन्ने

।। ओ३म् ।।

मनोमयः प्राणशरीरनेता प्रतिष्ठितोऽन्ने हृदयं सन्निधाय।
तद्‌ विज्ञानेन परिपश्यन्ति धीरा आनन्दरूपममृतं यद्‌ विभाति ॥

वह मनोमय है, प्राण एवं शरीर का नेता है, जिसने जड़तत्त्व (अन्न) में हृदय को स्थापित कर दिया है, जो स्वयं जड़तत्त्व (अन्न) में सुप्रतिष्ठित है। उसे जानने से ज्ञानीजन (धीर पुरुष) अपने चारों ओर 'उस' (आत्मतत्त्व) का दर्शन करते हैं जिसकी ज्योति सर्वत्र भासित होती है, जो 'आनन्दरूप' एवं अमृत-स्वरूप है।

A mental being, leader of the life and the body, has set a heart in matter, in matter he has taken his firm foundation. By its knowing the wise see everywhere around them That which shines in its effulgence, a shape of Bliss and immortal.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.८ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #मन #जीवात्मा
।। ओ३म् ।।

मनोमयः प्राणशरीरनेता प्रतिष्ठितोऽन्ने हृदयं सन्निधाय।
तद्‌ विज्ञानेन परिपश्यन्ति धीरा आनन्दरूपममृतं यद्‌ विभाति ॥

वह मनोमय है, प्राण एवं शरीर का नेता है, जिसने जड़तत्त्व (अन्न) में हृदय को स्थापित कर दिया है, जो स्वयं जड़तत्त्व (अन्न) में सुप्रतिष्ठित है। उसे जानने से ज्ञानीजन (धीर पुरुष) अपने चारों ओर 'उस' (आत्मतत्त्व) का दर्शन करते हैं जिसकी ज्योति सर्वत्र भासित होती है, जो 'आनन्दरूप' एवं अमृत-स्वरूप है।

A mental being, leader of the life and the body, has set a heart in matter, in matter he has taken his firm foundation. By its knowing the wise see everywhere around them That which shines in its effulgence, a shape of Bliss and immortal.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.८ ) #मुण्डकोपनिषद् #upnishad #मन #जीवात्मा