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बहुत उन्माद का समय है मेरे दोस्त कुछ किताबें पढ़ना

बहुत उन्माद का समय है मेरे दोस्त 
कुछ किताबें पढ़ना 
और ईश्वर को याद करना
वैसे नहीं जैसे सरकारें और उनके हरकारे कर रहे हैं 
एक मुहल्ले के दादा की तरह नहीं 
एक मित्र की तरह 

कुछ सिनेमा देखना
और रुलाइयों को याद करना 
कैमरा पा कर फूटने वाली नहीं 
वे जो कैमरा देख सकपका कर चुप होने लगती हैं 
और प्रॉडक्ट-सेल्समैन के बीच फैले 
बाज़ार के कल्लोल को निस्पृह भाव से देखती रहती हैं 

चेहरों को किनारे से ज़रा-सा खुरचना
और पहचान कर वापिस चिप्पी लगा देना  

कुछ अच्छा संगीत ना 
और उनमें बहते यूटोपिया पर सूखी हँसी हँसना 
थोड़ी-थोड़ी बात करना 
डरना बहुत-बहुत लेकिन ज़ाहिर कम करना 

सीखना उस दिसंबर बच गए लोगों से 
और इस जनवरी वैसे ही बचे रहना 

खूब अश्लील चुटकुले सोचना 
और मुझे सुनाना 
तुम फरवरी में मुझसे मिलना।

©राज घोष मित्र को पत्र
बहुत उन्माद का समय है मेरे दोस्त 
कुछ किताबें पढ़ना 
और ईश्वर को याद करना
वैसे नहीं जैसे सरकारें और उनके हरकारे कर रहे हैं 
एक मुहल्ले के दादा की तरह नहीं 
एक मित्र की तरह 

कुछ सिनेमा देखना
और रुलाइयों को याद करना 
कैमरा पा कर फूटने वाली नहीं 
वे जो कैमरा देख सकपका कर चुप होने लगती हैं 
और प्रॉडक्ट-सेल्समैन के बीच फैले 
बाज़ार के कल्लोल को निस्पृह भाव से देखती रहती हैं 

चेहरों को किनारे से ज़रा-सा खुरचना
और पहचान कर वापिस चिप्पी लगा देना  

कुछ अच्छा संगीत ना 
और उनमें बहते यूटोपिया पर सूखी हँसी हँसना 
थोड़ी-थोड़ी बात करना 
डरना बहुत-बहुत लेकिन ज़ाहिर कम करना 

सीखना उस दिसंबर बच गए लोगों से 
और इस जनवरी वैसे ही बचे रहना 

खूब अश्लील चुटकुले सोचना 
और मुझे सुनाना 
तुम फरवरी में मुझसे मिलना।

©राज घोष मित्र को पत्र