वो चीख़ चीख़ रोती रही हम सोते रहे, वो ताड़ ताड़ होती रही हम सोते रहे । क्या फर्क पड़ता है वो मेरी कोई न थी, वो हार कर दम तोड़ती रही हम सोते रहे । ये नई कोई कहानी नहीं आदी हैं हम, हर युग की नारी हारती रही हम सोते रहे। नींद कुम्भकरण की कुछ वर्षो की थी, सदियाँ यूँ ही बीतती रही हम सोते रहे । जाने कब वो सवेरा होगा नींद ये टूटेगी, हर घर की आब टूटती रही हम सोते रहे। #againstrape #rapefreeindia #writingcommunity #yqbaba #yqhindi #yqpoetry #yqtales