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पवन की पर प्रचीर में रुका, जाला जीवन जा रहा झुका;

पवन की पर प्रचीर में रुका,
जाला जीवन जा रहा झुका;
इस झूलसते विश्वा वन की,
मैं कुसूम ऋतू रात रे मना !

चिर निराशा निराधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर में ;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन !

जहँ मरू ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हों जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन !
sandeep cingh सुशांत सिंह राजपूत के ऊपर कविता दिल को आकर्षित कर लेने वाला अच्छा लगे तो लाइक करें कमेंट करें शेयर करें प्लीज
#SushantSinghRajput
पवन की पर प्रचीर में रुका,
जाला जीवन जा रहा झुका;
इस झूलसते विश्वा वन की,
मैं कुसूम ऋतू रात रे मना !

चिर निराशा निराधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर में ;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन !

जहँ मरू ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हों जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन !
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