पवन की पर प्रचीर में रुका, जाला जीवन जा रहा झुका; इस झूलसते विश्वा वन की, मैं कुसूम ऋतू रात रे मना ! चिर निराशा निराधर से, प्रतिच्छायित अश्रु सर में ; मधुप मुखर मरंद मुकुलित, मैं सजल जलजात रे मन ! जहँ मरू ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती; उन्हों जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन ! sandeep cingh सुशांत सिंह राजपूत के ऊपर कविता दिल को आकर्षित कर लेने वाला अच्छा लगे तो लाइक करें कमेंट करें शेयर करें प्लीज #SushantSinghRajput