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कर्तव्यपथ की कर्मनिष्ठा से कहीं अब रुष्ट सब हैं। प

कर्तव्यपथ की कर्मनिष्ठा से कहीं अब रुष्ट सब हैं।
परिचित है दानव से दानव,हाँ वहीं अब दुष्ट सब हैं।
आदमी ही आदमी का बन रहा है संज्ञान दुश्मन,
क्यों हो रहा है ये 'अंकुरित'?क्यों नहीं संतुष्ट सब हैं?
                                    :- अंकुर राज 'अंकुरित' क्यों हो रहा है ये अंकुरित??
कर्तव्यपथ की कर्मनिष्ठा से कहीं अब रुष्ट सब हैं।
परिचित है दानव से दानव,हाँ वहीं अब दुष्ट सब हैं।
आदमी ही आदमी का बन रहा है संज्ञान दुश्मन,
क्यों हो रहा है ये 'अंकुरित'?क्यों नहीं संतुष्ट सब हैं?
                                    :- अंकुर राज 'अंकुरित' क्यों हो रहा है ये अंकुरित??