जह महां उद्यान में मार्ग पावै तेओ साधु संग मिल जोत प्रगटावै।। तिन सन्तन की बांछों धूड़ नानक की हर लोचा पूर।। अर्थ:- जहां महा भूल-भुलैया में, महा अंधकार में निराकार प्रकाश को देखने का मार्ग मन को मिलता है ऐसे ही सच्चे साधु-खालसे के संग से (जिसने नेत्रों को एकदृष्ट करना सीख लिया है) मिल सर सर्वत्र रव रहा निराकार प्रकाश यानी जोत प्रगट हो जाती है।। ऐसे सन्त जनों के बचनों रूपी धूड़ को मेरा मन लोचता है और हे निराकार परमेश्वर! अपने नानक की यह प्रबल इच्छा को पूर्ण करो! ©Biikrmjet Sing #सन्त