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लिखतें लिखतें जब पिघलने लगता है वक्त, और ढलते सूरज

लिखतें लिखतें जब पिघलने लगता है वक्त,
और ढलते सूरज की गोद में छिप जाता है ,
कोई जब वक्त का खयाल दिला,
उँगलियो पर  बीते क्षण गिनवाता है।।

सोच में पड़ जाती हूँ ,
कैसा है ये गजब ,
क्या कोई अपनी साँसे रोक कर,
स्वांसों का हिसाब रख पाता है। 
कविता

©Kavita jayesh Panot #लिखावट#वक्त#पाबंदियां#खयाल
लिखतें लिखतें जब पिघलने लगता है वक्त,
और ढलते सूरज की गोद में छिप जाता है ,
कोई जब वक्त का खयाल दिला,
उँगलियो पर  बीते क्षण गिनवाता है।।

सोच में पड़ जाती हूँ ,
कैसा है ये गजब ,
क्या कोई अपनी साँसे रोक कर,
स्वांसों का हिसाब रख पाता है। 
कविता

©Kavita jayesh Panot #लिखावट#वक्त#पाबंदियां#खयाल