तेरे आँचल की छाया में, मेरा बचपन है बीता माँ। तुझे मैं चाहता हूँ इतना, तेरे लिए ही हूँ जीता माँ। कभी भगवान को दुनिया में, किसी ने ना देखा माँ। मेरे लिए तो तुझमें ही, है भगवान और सीता माँ। तू इतना चाहती है मुझको, ये तेरा दिल जानता है। मैं कितना चाहता हूँ तुझको, मैं खुद नहीं जानता माँ। सुप्रभात, 🌼🌼🌼🌼 आज की एक रचना मांँ के नाम....💝 🌼आज का हमारा विषय "तेरे आंँचल की छाया में" बहुत ही ख़ूबसूरत है, आशा है आप लोगों को पसंद आएगा। 🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।