उलझ कर तेरे इश्क में यूं आबाद हो जाऊं जैसे लखनऊ का मैं अमीनाबाद हो जाऊं मै सई नदी की तरह निहारे कब तलक कोई शिव मिले तो मै कंधी घाट हो जाऊं कविता कहने लगी हूं मै जरा सा मुस्कुरा दो तुम यहीं चाहते थे तुम मै बर्बाद हो जाऊ सुष्मिता मिश्रा ©Sushmita mishra अज्ञात