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बस मौत नहीं मिली उस जूझते इंसान को, दैवयोग से, जिं

बस मौत नहीं मिली उस
जूझते इंसान को, दैवयोग से,
जिंदगी आगे जाएगी?! 
ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने
कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे
कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते!
हर मुर्दे का अधिकार है कि
उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए!
क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं!
उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही,
क्यों सीधी समझ वाले हर बार
अधिक आसान रास्ता पाते हैं!
व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी
उसकी चाबुक खाई पीठ पर,
फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर!
फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और
जहरीले स्तन उसपर लाध डाले,
वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं,
भले ही बोझ उन्हें झुका डाले!
आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें
एक सरल सी बात बताती हैं!
व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं
और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी 
कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है।
बांकी, काजल की कोठरी में
सबको पता है, अथाह कालिख होती है,
तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी
काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2
बस मौत नहीं मिली उस
जूझते इंसान को, दैवयोग से,
जिंदगी आगे जाएगी?! 
ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने
कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे
कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते!
हर मुर्दे का अधिकार है कि
उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए!
क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं!
उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही,
क्यों सीधी समझ वाले हर बार
अधिक आसान रास्ता पाते हैं!
व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी
उसकी चाबुक खाई पीठ पर,
फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर!
फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और
जहरीले स्तन उसपर लाध डाले,
वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं,
भले ही बोझ उन्हें झुका डाले!
आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें
एक सरल सी बात बताती हैं!
व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं
और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी 
कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है।
बांकी, काजल की कोठरी में
सबको पता है, अथाह कालिख होती है,
तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी
काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2

क्रांतिवीर 2