#Worldsmileday शब-ए-बज्म कासिद खू-ए-यार है, अहद-ए-हिज्र शब-ए-महताब है, चश्म-ए-तर बाइज़ नहीं मोहब्बत-ए-इश्क़ में। रोज-ए-अब्र नहीं फिर दौर ए जाम क्यो, चश्म-ए-तर वाइज़ नहीं फिर जाम-ए-जम क्यो। तेरे दैर-ए-आंस्तां रहगुजर हो। एतमाद कर अस्ल में हयात-ए-कैद निजात हो। बाबा shayri#