क्या होगा? जब पृथ्वी बादल से आलिंगन की जिद्द करेगी.... Read in caption ये वसुधा कै तल पर महकी महकी सी फिजायें । याद दिलाती है , वो जुल्फे धीमी सी हवाएं ।। रति सा अनुपम सौंदर्य लज्जाती हुई निगाहें। बाली में फंसी अंगुलिया , और तुम्हारी वो कराहें॥ ये सर्द पवन के झोंके , तेरे रुखसार से गुजर रहे है । मौका दे इन्हें छूने का , मेरे हाथ कबसे ठिठर रहे है।। ये औंस के आंसू नभ ने , पृथ्वी के विलाप में बरसाए होंगे । नही थम रहे ये अश्रु , तो दिसम्बर के बादल दरशाए होंगे ।।