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पराकाष्ठा वो दरिंदगी की आज पार कर गये, बन हैवान वो

पराकाष्ठा वो दरिंदगी की आज पार कर गये,
बन हैवान वो जिंदा जिस्म का कत्ल कर गये,

आज फिर एक बेगुनाह की रूह को मार गये,
सांसों के साथ आज वो सपने भी फिर सो गये,

अस्मत हुई थी जार जार,इंसानियत हुई शर्मसार,
न उम्र का करते ख़्याल,लूटते आन एक नही हजार,

सफेदपोश की आड़ में फिर वो  बचा लिये जाते है,
हज़ारों की तादाद में ऐसी कई फाइलें दबा दिए जाते है।  स्वागत है आप सब का प्रतियोगिता में

👉 प्रतियोगिता की समयसीमा आज रात बारह बजे तक
👉 पंक्तियों की सीमा -8
👉 कृपया मात्राओं और त्रुटियों का ध्यान रखें
👉 कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग न करें
👉 कॉलब करने के बाद अपना कॉलब ऑप्शन बंद कर दे
👉 रचना स्वरचित होनी चाहिए किसी और लेखक की रचना कॉपी पेस्ट करने पर उस आईडी को ब्लॉक कर दिया जायेगा और नाम सबके सामने उजागर किया जायेगा इसलिए निवेदन है थोड़ा लिखिए परन्तु अपना लिखिए सीखने के लिए लिखे
पराकाष्ठा वो दरिंदगी की आज पार कर गये,
बन हैवान वो जिंदा जिस्म का कत्ल कर गये,

आज फिर एक बेगुनाह की रूह को मार गये,
सांसों के साथ आज वो सपने भी फिर सो गये,

अस्मत हुई थी जार जार,इंसानियत हुई शर्मसार,
न उम्र का करते ख़्याल,लूटते आन एक नही हजार,

सफेदपोश की आड़ में फिर वो  बचा लिये जाते है,
हज़ारों की तादाद में ऐसी कई फाइलें दबा दिए जाते है।  स्वागत है आप सब का प्रतियोगिता में

👉 प्रतियोगिता की समयसीमा आज रात बारह बजे तक
👉 पंक्तियों की सीमा -8
👉 कृपया मात्राओं और त्रुटियों का ध्यान रखें
👉 कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग न करें
👉 कॉलब करने के बाद अपना कॉलब ऑप्शन बंद कर दे
👉 रचना स्वरचित होनी चाहिए किसी और लेखक की रचना कॉपी पेस्ट करने पर उस आईडी को ब्लॉक कर दिया जायेगा और नाम सबके सामने उजागर किया जायेगा इसलिए निवेदन है थोड़ा लिखिए परन्तु अपना लिखिए सीखने के लिए लिखे