कितना सहज हो गया है रावण का मिलना कितना सहज हो गया है मुखौटों के साथ -साथ चलना राम आज भी दुःप्राप्य हैं भले कण -कण में वह ही व्याप्य हैं यहाँ तो सब ही रावण हैं फिर कहाँ मिलेंगे राम? खुद को भला कौन जलाता है मन का रावण जल नहीं पाता है अब कौन लगाएगा रावण पर विराम? हर दिन दशहरा मना लो अपने अंदर के रावण को जला लो सोए राम को जगा लो || HAPPY VIJYADASHMI @स्मृति..... मोनिका ✍️ ©स्मृति.... Monika फिर कहाँ मिलेंगे राम?