बयांबा बयांबा तुम तो मेरी जां मागते । इस रूठे ज़माने से न जाने तुम क्या मागते। ख्याबो का इक मन्दिर बसाया था हमने। तुम तो उसमे बसी मूरत को मागते। आहिस्ता आहिस्ता अब बढ़ाने लगे थे पग। न जाने क्यों लोग बुजुर्गों की लाठी मागते। खुद की तलाश में निकला बेवजह गर से। अब तो पड़ोसी भी मेरा पता मागते । कुदरत के कहर का जिम्मा हमारे ऊपर। जब आयी मुसीबत तो आक्सीजन मागते। हम ही तो हैं जिसे तुम प्राण देवता कहते। ए हतियाज के लिए क्यों मेरी सांसे मागते। ©prashant बयां बा बयांबा तुम तो मेरी जां मागते #Flower