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""" मेरा संघर्ष """ लोग कहते हैं कि जीवन में सफल ह

""" मेरा संघर्ष """ लोग कहते हैं कि जीवन में सफल होना ही सब कुछ नहीं है, जीवन की महत्ता सफलता से भी परे है. पर हकीकत असल जिंदगी में ये नहीं होती, जो होती है उसे कोई बताता ही नहीं. वो ये है कि सफलतायें यदि जीवन से बढ़कर नहीं होती तो जीवन से कम भी नहीं होती. और यह स्थिति संक्रमण की अवस्थाओं में ज्यादा ही जटिल हो जाती है, इसमें सक्षम व्यक्ति ही अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख पाता है, नहीं तो अन्य का क्या जो कुछ हम जैसे नाजुक प्रस्थिति वाले होते हैं, उनकी संक्रमण की अवस्थाएँ बलि आखिर ले ही लेती हैं. यदि कहीं ऐसे संक्रमणशील संघर्षों में हमें स्वयं को तलाशना हुआ तो हम क्या करेंगें? हम तो वहाँ से आये हैं, जहाँ अन्न के एक - एक दानें की लोग कीमत बखूब समझते हैं. यदि रेत से घर बनाने का इकलौता संघर्ष ऐसे में परिवर्तनों के आगोश में मिलकर धूल बन जाये, तो ऐसे में सामाजिक उपहास के असिघातों में क्या जीवन देखा जा सकेगा. ऐसे में उत्पन्न होने वाली विकल्पहीनता की दशायें  कहीं जीवन निवृत्ति की ओर न गतिमान कर दें.

               कभी-कभी तो मन बहुत डर लगने लगता है. चित्त की आकुलतायें व्याकुलताओं की उद्वेगनाओं को सरगर्म कर देती है. विवेक हीनता और विवेक शून्यता की मध्य की आभासी विभाजक दीवार ढह चुकी होती है. चेहरों पर प्रतिबिंबित चिंता की रेखायें, निस्तब्ध आवाज हीन क्रन्दना, आंखों में आसुओं का सैलाब और कभी-कभार उस सैलाब से कपोलों पर ढुलकती जल बूंदे. ये हमारी आंतरिक हृदयंगम वेदनाओं के झलकियों की वे प्रस्तुतियां हैं, जो कभी-कभी भावी परिवर्तन की परिकल्पनाओं में ही इतना बिफर पड़ती हैं कि वर्तमान भी उसमें नैराश्यता की अवस्थाओं से किनारा नहीं कर पाता. काश! हमारे निकट भी कोई  हमें आशंकाओं के अंधकार से बाहर निकलने का मार्ग सुझा पाता और हम अपनी पीड़ाओं का भार उसके सम्बल में अपने आंसुओं के प्रवाह में बांटकर आशावादी आइने में पुनः स्फूर्त हो पाते.

ग़मों को बांट लेते हैं अकेलेपन की दुनिया में,
मगर वो चाहिए हमकों ग़मों को बांटने वाला.
""" मेरा संघर्ष """ लोग कहते हैं कि जीवन में सफल होना ही सब कुछ नहीं है, जीवन की महत्ता सफलता से भी परे है. पर हकीकत असल जिंदगी में ये नहीं होती, जो होती है उसे कोई बताता ही नहीं. वो ये है कि सफलतायें यदि जीवन से बढ़कर नहीं होती तो जीवन से कम भी नहीं होती. और यह स्थिति संक्रमण की अवस्थाओं में ज्यादा ही जटिल हो जाती है, इसमें सक्षम व्यक्ति ही अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख पाता है, नहीं तो अन्य का क्या जो कुछ हम जैसे नाजुक प्रस्थिति वाले होते हैं, उनकी संक्रमण की अवस्थाएँ बलि आखिर ले ही लेती हैं. यदि कहीं ऐसे संक्रमणशील संघर्षों में हमें स्वयं को तलाशना हुआ तो हम क्या करेंगें? हम तो वहाँ से आये हैं, जहाँ अन्न के एक - एक दानें की लोग कीमत बखूब समझते हैं. यदि रेत से घर बनाने का इकलौता संघर्ष ऐसे में परिवर्तनों के आगोश में मिलकर धूल बन जाये, तो ऐसे में सामाजिक उपहास के असिघातों में क्या जीवन देखा जा सकेगा. ऐसे में उत्पन्न होने वाली विकल्पहीनता की दशायें  कहीं जीवन निवृत्ति की ओर न गतिमान कर दें.

               कभी-कभी तो मन बहुत डर लगने लगता है. चित्त की आकुलतायें व्याकुलताओं की उद्वेगनाओं को सरगर्म कर देती है. विवेक हीनता और विवेक शून्यता की मध्य की आभासी विभाजक दीवार ढह चुकी होती है. चेहरों पर प्रतिबिंबित चिंता की रेखायें, निस्तब्ध आवाज हीन क्रन्दना, आंखों में आसुओं का सैलाब और कभी-कभार उस सैलाब से कपोलों पर ढुलकती जल बूंदे. ये हमारी आंतरिक हृदयंगम वेदनाओं के झलकियों की वे प्रस्तुतियां हैं, जो कभी-कभी भावी परिवर्तन की परिकल्पनाओं में ही इतना बिफर पड़ती हैं कि वर्तमान भी उसमें नैराश्यता की अवस्थाओं से किनारा नहीं कर पाता. काश! हमारे निकट भी कोई  हमें आशंकाओं के अंधकार से बाहर निकलने का मार्ग सुझा पाता और हम अपनी पीड़ाओं का भार उसके सम्बल में अपने आंसुओं के प्रवाह में बांटकर आशावादी आइने में पुनः स्फूर्त हो पाते.

ग़मों को बांट लेते हैं अकेलेपन की दुनिया में,
मगर वो चाहिए हमकों ग़मों को बांटने वाला.

लोग कहते हैं कि जीवन में सफल होना ही सब कुछ नहीं है, जीवन की महत्ता सफलता से भी परे है. पर हकीकत असल जिंदगी में ये नहीं होती, जो होती है उसे कोई बताता ही नहीं. वो ये है कि सफलतायें यदि जीवन से बढ़कर नहीं होती तो जीवन से कम भी नहीं होती. और यह स्थिति संक्रमण की अवस्थाओं में ज्यादा ही जटिल हो जाती है, इसमें सक्षम व्यक्ति ही अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख पाता है, नहीं तो अन्य का क्या जो कुछ हम जैसे नाजुक प्रस्थिति वाले होते हैं, उनकी संक्रमण की अवस्थाएँ बलि आखिर ले ही लेती हैं. यदि कहीं ऐसे संक्रमणशील संघर्षों में हमें स्वयं को तलाशना हुआ तो हम क्या करेंगें? हम तो वहाँ से आये हैं, जहाँ अन्न के एक - एक दानें की लोग कीमत बखूब समझते हैं. यदि रेत से घर बनाने का इकलौता संघर्ष ऐसे में परिवर्तनों के आगोश में मिलकर धूल बन जाये, तो ऐसे में सामाजिक उपहास के असिघातों में क्या जीवन देखा जा सकेगा. ऐसे में उत्पन्न होने वाली विकल्पहीनता की दशायें कहीं जीवन निवृत्ति की ओर न गतिमान कर दें. कभी-कभी तो मन बहुत डर लगने लगता है. चित्त की आकुलतायें व्याकुलताओं की उद्वेगनाओं को सरगर्म कर देती है. विवेक हीनता और विवेक शून्यता की मध्य की आभासी विभाजक दीवार ढह चुकी होती है. चेहरों पर प्रतिबिंबित चिंता की रेखायें, निस्तब्ध आवाज हीन क्रन्दना, आंखों में आसुओं का सैलाब और कभी-कभार उस सैलाब से कपोलों पर ढुलकती जल बूंदे. ये हमारी आंतरिक हृदयंगम वेदनाओं के झलकियों की वे प्रस्तुतियां हैं, जो कभी-कभी भावी परिवर्तन की परिकल्पनाओं में ही इतना बिफर पड़ती हैं कि वर्तमान भी उसमें नैराश्यता की अवस्थाओं से किनारा नहीं कर पाता. काश! हमारे निकट भी कोई हमें आशंकाओं के अंधकार से बाहर निकलने का मार्ग सुझा पाता और हम अपनी पीड़ाओं का भार उसके सम्बल में अपने आंसुओं के प्रवाह में बांटकर आशावादी आइने में पुनः स्फूर्त हो पाते. ग़मों को बांट लेते हैं अकेलेपन की दुनिया में, मगर वो चाहिए हमकों ग़मों को बांटने वाला. #Success #Fear #Failure #Struggle #changes #JourneyOfLife #Mobility