अब ज़िन्दगी का हर पल ऐसे गुजरता हैं , जैसे ज़िन्दगी एक-एक पल को तरस रही हो अब ज़िन्दगी ऐसे सफ़र से गुज़र रही है जैसे सफ़र ही ज़िन्दगी की मंज़िल हो अब ज़िन्दगी को घुट-घुट कर जी रहे हैं हम तो जैसे घुटन ही ज़िन्दगी का संदर्भ हो अब ज़िन्दगी को किसी के साथ की आस नही हैं जो आस -पास हैं वो भी साथ नही हैं अब ज़िन्दगी बेपरवाह नज़र आती है ऐसे जैसे परवाह सिगरेट के धुँए में उड़ चुकी हो ----------------अनुराग सक्सेना अब जिन्दगी का हर पल------!