बादलों की अठखेलियां, हवा के थपेड़ो से जूझते पौधे, गेहूं चुगते कबूतरों की गुटर गूं, तोतों, मैना, गौरेय्या की मस्ती, बिल्ली की घूरती, शिकारी आँखें, सब निहार रहा हूँ, अपलक! इस सबका अर्थ ढूढ़ने का निरर्थक प्रयास करता मन मेरी संवेदनाये,अब शून्य तो नहीं हो गईं कहीं? ©Kamlesh Kandpal #करिश्में