अगर खिलाफ होते हैं, तो होने दो, जान थोड़ी है, ये सब धुआ है, कोई आसमान थोड़ी है । लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में, यहां पर सिर्फ, हमारे मकान थोड़ी है । मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन, हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है । हमारे मुंह से जो निकले वहीं सदाकत है, हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है । जो आज साहिब-ए-मसनद हैं कल नहीं होंगे, किरायेदार हैं कोई जाती मकान थोड़ी है । सभी के खून शामिल है इस मिट्टी में, ये किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ।। - डॉ राहत इंदौरी We missed a gem of Indian poetry.... #RIPRahatIndori #Beautiful