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जो मनुष्य परिश्रम त्यागकर पूर्णतया भाग्याधीन रहता

जो मनुष्य परिश्रम त्यागकर पूर्णतया भाग्याधीन रहता है उसकी स्थिति
महलों के आगे खड़े उस शेर की तरह हो जाती है जिसके सिर पर कोवे बैठते है।

©viraj
  #परिश्रम