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जो मनुष्य साहित्य और संगीत कला को नहीं जानता अथवा

जो मनुष्य साहित्य और संगीत कला को नहीं जानता अथवा जिनका इनमें प्रेम नहीं है वे बिना सींग और पूंछ के साक्षात् पशु है । यह उनके बड़े भाग्य हैं जो वे तृण नही खाते और जीते रहते हैं ।
 अभिप्राय यह है कि साहित्य और संगीत कला से हीन मनुष्यों में मनुष्य ही नहीं रह जाता। उन्हें मनुष्य के रूप में पशु ही समझना उचित है।

—@snatni #नीतिशतक
जो मनुष्य साहित्य और संगीत कला को नहीं जानता अथवा जिनका इनमें प्रेम नहीं है वे बिना सींग और पूंछ के साक्षात् पशु है । यह उनके बड़े भाग्य हैं जो वे तृण नही खाते और जीते रहते हैं ।
 अभिप्राय यह है कि साहित्य और संगीत कला से हीन मनुष्यों में मनुष्य ही नहीं रह जाता। उन्हें #मनुष्य_के_रूप_में_पशु ही समझना उचित है।
#मेरीक़लमसे #yqsnatni
#yqdidi #yqinspiration
#yqquotes #trending
जो मनुष्य साहित्य और संगीत कला को नहीं जानता अथवा जिनका इनमें प्रेम नहीं है वे बिना सींग और पूंछ के साक्षात् पशु है । यह उनके बड़े भाग्य हैं जो वे तृण नही खाते और जीते रहते हैं ।
 अभिप्राय यह है कि साहित्य और संगीत कला से हीन मनुष्यों में मनुष्य ही नहीं रह जाता। उन्हें मनुष्य के रूप में पशु ही समझना उचित है।

—@snatni #नीतिशतक
जो मनुष्य साहित्य और संगीत कला को नहीं जानता अथवा जिनका इनमें प्रेम नहीं है वे बिना सींग और पूंछ के साक्षात् पशु है । यह उनके बड़े भाग्य हैं जो वे तृण नही खाते और जीते रहते हैं ।
 अभिप्राय यह है कि साहित्य और संगीत कला से हीन मनुष्यों में मनुष्य ही नहीं रह जाता। उन्हें #मनुष्य_के_रूप_में_पशु ही समझना उचित है।
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