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वक़्ती तौर पर जब हम, बेबस या खुदगर्ज हो जाते हैं ख़ा

वक़्ती तौर पर जब हम, बेबस या खुदगर्ज हो जाते हैं
ख़ामोशी भी गुनाही का, बेहद संगीन सबब बन जाती है...!

ख़ामोशी की चुभन एक, एक घुटन एक टीस ताउम्र सालती है..
ये जो चुभन है ना..!
ख़ामोशी भी सदा अच्छी नहीं होती याद दिलाती है..!

जैसे पैर में काँटे चुभने से पड़ी हुई किसी गाँठ की चुभन..!
ठीक उसी तरह दुखती है और कोताही की याद दिलाती है कि
खामोशियाँ हरदम बेहतर नहीं होती..! वक़्ती तौर पर जब हम, बेबस या खुदगर्ज हो जाते हैं
ख़ामोशी भी गुनाही का, बेहद संगीन सबब बन जाती है...!

ख़ामोशी की चुभन एक, एक घुटन एक टीस ताउम्र सालती है..
ये जो चुभन है ना..!
ख़ामोशी भी सदा अच्छी नहीं होती याद दिलाती है..!

जैसे पैर में लगे हुए किसी काँटे के चुभने से पड़ी हुई गाँठ की चुभन..!
वक़्ती तौर पर जब हम, बेबस या खुदगर्ज हो जाते हैं
ख़ामोशी भी गुनाही का, बेहद संगीन सबब बन जाती है...!

ख़ामोशी की चुभन एक, एक घुटन एक टीस ताउम्र सालती है..
ये जो चुभन है ना..!
ख़ामोशी भी सदा अच्छी नहीं होती याद दिलाती है..!

जैसे पैर में काँटे चुभने से पड़ी हुई किसी गाँठ की चुभन..!
ठीक उसी तरह दुखती है और कोताही की याद दिलाती है कि
खामोशियाँ हरदम बेहतर नहीं होती..! वक़्ती तौर पर जब हम, बेबस या खुदगर्ज हो जाते हैं
ख़ामोशी भी गुनाही का, बेहद संगीन सबब बन जाती है...!

ख़ामोशी की चुभन एक, एक घुटन एक टीस ताउम्र सालती है..
ये जो चुभन है ना..!
ख़ामोशी भी सदा अच्छी नहीं होती याद दिलाती है..!

जैसे पैर में लगे हुए किसी काँटे के चुभने से पड़ी हुई गाँठ की चुभन..!
anitasaini9794

Anita Saini

Bronze Star
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