किसी के प्यार में पड़कर भुलाऊं ये जहां कैसे मेरी माँ से भी बेहतर इस जहां में कौन है कैसे मुझे ना चाह उनकी है सदा जो स्वार्थ पर जीते पला हूँ जिन हवाओं में भुला दूं मैं भला कैसे आर वी चित्रांगद