खैरख्वाह बन जिन्होंने पीठ थपथपायी हमारी कदम जब मंजील की दहलीज तक पहुंचे उन्होंने ने ही बेसाख्ता पीछे खींच लिया हमें खैरख्वाह-शुभचिंतक,बेसाख्ता-सहसा/एकाएक बेदम शायर आयुष कुमार गौतम की कलम से कदम जब मंजील की दहलीज तक पहुंचे