सीमित साधन (चिंतन) (अनुशीर्षक में पढ़ें) सीमित साधन ज़िंदगी सबकी ऐश्वर्यपूर्ण नहीं होती। सब लोग सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो ये सम्भव नहीं होता। आधुनिक साधनों के रहते जीवन हमारा चाहे अब बेहद आसान हो गया है। पर हर किसी को वो साधन उपलब्ध हों ये मुमकिन नहीं हो पाता। समाज में मध्यमवर्गीय परिवार भी हैं जो इन साधनों को पाने के लिए नित्य संघर्ष कर रहे हैं। अपने बच्चों को वो अच्छी शिक्षा दे सकें इसके लिए कुछ भी करके वो उनको बड़े स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं। उनको हर वो अवसर देने की कोशिश वो करते हैं जिससे वो समाज के बीच सर ऊँचा करके चल सकें। उनको हर सुख सुविधा का साधन वो दिलाने की पूरी कोशिश वो करते हैं। इसके लिए ज़रूरत से ज़्यादा परिश्रम भी वो करते हैं। बड़े विद्यालयों में जाकर बच्चे अपने साथियों की ऐशो आराम की ज़िंदगी देखकर उनकी जैसी ज़िंदगी पाने को लालायित हो जाते हैं। अपने माता-पिता से वो उन्हीं साधनों की मांग करते हैं जो उनके साथियों के पास हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में वो घूमना चाहते हैं। पाँच सितारा होटल में वो पार्टी करना चाहते हैं। विदेश यात्रा पर वो जाना चाहते हैं। उनको पढ़ाने के लिए उनके माता-पिता क्या संघर्ष कर रहे हैं, उससे वो अनभिज्ञ रहते हैं। क्या ये सही है? जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करना माना ज़रूरी है। पर सुख ऐश्वर्य की चीजों के पीछे अंधाधुंध भागना कहाँ तक उचित है? हमको बच्चों को सीमित साधनों के साथ खुश रहना सिखाना होगा। उनकी हर मांग पूरी करना कोई ज़रूरी नहीं। उनको ये समझाना होगा कि परिवार सबसे पहले है। परिवार जनों का साथ बेहद ज़रूरी है। ऐशो आराम और विलासतापूर्ण जीवन अगर ना भी मिले तो जीवन खत्म नहीं हो जाता। उनको इस बात का ज्ञान हमको ही देना होगा कि अगर वो मेहनत करेंगे तो स्वयं हर साधन को वो ख़ुद के लिए पा सकते हैं। साथ ही उन्हें स्वार्थ से ऊपर परहित का भी संदेश हमको ही देना होगा। तभी हमारा आने वाला समाज और देश सही मायनों में समृद्ध हो सकेगा। #collabwithकोराकाग़ज़ #kkpc28 #विशेषप्रतियोगिता