कतरे कतरे से तुम्हारा लिबास सिल रहा हूं। तुम्हारे बिके हुए खोटे जज़्बात सिल रहा हूं।। रोज़ शहरों में तड़पती मासूमों का जिस्म देखकर। मैं इंसानियत की कतरन से कफ़न सिल रहा हूं।। कतरे कतरे से तुम्हारा लिबास सिल रहा हूं। तुम्हारे बिके हुए खोटे जज़्बात सिल रहा हूं।। रोज़ शहरों में तड़पती मासूमों का जिस्म देखकर। मैं इंसानियत की कतरन से कफ़न सिल रहा हूं।। @shyamal_ke_shabd