करताल-झाल-चौताल बजाए, गाए कबिरा-लगाए अबिरा, सखि ऊ किशन-सजन कब लौटिहं रे ?? ई मन मुस्कात-ऊ गगन हरिसात, उईं उनकै रूप मन में मचावे उत्पात, सखि ऊ किशन-सजन कब लौटिहं रे ?? गईल-गईल कए माघ गईल, बीतल भईल ऐसस कईयों फाग, सखि ऊ किशन-सजन कब लौटिहं रे ?? जन बरसान में बरसावे आँखी से पानी, मथुरा में नाही खेले,वृन्दावनओं मे देखले बानी सखि ऊ किशन-सजन कब लौटिहं रे ?? ©Sp"रूपचन्द्र"✍ #गोपी, #अवधी ,#ब्रज ,#भोजपुरी #holi2021