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मैं फिर मिलूँगी तुझे किसी शाम, जुल्फें बिखेरे हुय

मैं फिर मिलूँगी तुझे किसी शाम, 
जुल्फें बिखेरे हुये। 
ढलते सूरज को निहारती, तेरी राह तकती 
बादलों के पिछे जैसे छुपा हो कोई राज़, 
उसे ढूँढते हुये। 
चाँद कि चाँदनी बढ़ी जा रही, तारों के दीये रौशन हुए। 
लटों को सुलाझाती हुई, आँचल से उलझे हुए। 
झुमको को आज रहने दो, चाँदबालीयों पर दिल हारते हुए। 
श्याह सी काली भौंहो की कमानी और तेज करते हुये। 
काजल को आँखों में सजाते हुए। 
और मैं खुद देख कर किस बात पर इतराऊँ, 
हाँ, होंठो में लाली भरते हुए। 
गालों को सुर्ख करते हुए। 
आईने में खुद को निहारते हुए। 
आज फिर तुझे मेरे लिए वक्त नहीं, मैं आज मुझसे मिलूँगी मेरे लिए।

©Priyanka Mazumdar #मैंखुदसेमिलूँगी
मैं फिर मिलूँगी तुझे किसी शाम, 
जुल्फें बिखेरे हुये। 
ढलते सूरज को निहारती, तेरी राह तकती 
बादलों के पिछे जैसे छुपा हो कोई राज़, 
उसे ढूँढते हुये। 
चाँद कि चाँदनी बढ़ी जा रही, तारों के दीये रौशन हुए। 
लटों को सुलाझाती हुई, आँचल से उलझे हुए। 
झुमको को आज रहने दो, चाँदबालीयों पर दिल हारते हुए। 
श्याह सी काली भौंहो की कमानी और तेज करते हुये। 
काजल को आँखों में सजाते हुए। 
और मैं खुद देख कर किस बात पर इतराऊँ, 
हाँ, होंठो में लाली भरते हुए। 
गालों को सुर्ख करते हुए। 
आईने में खुद को निहारते हुए। 
आज फिर तुझे मेरे लिए वक्त नहीं, मैं आज मुझसे मिलूँगी मेरे लिए।

©Priyanka Mazumdar #मैंखुदसेमिलूँगी