आज एक ख्याल दिमाग में आया है ये कैसा नसीब मैने पाया है हाँ देखा था उसे अपना बनाने का ख्वाब अब उसे किसी ओर का होते देख सोचता हूँ उसने अपने बेटी होने का फर्ज निभाया है यकीं है मुझे उसने अपनी मेहन्दी मे देखा मेरा चेहरा होगा मजबूर थी वो उस पर भी तो रिश्तो का पहरा होगा हाँ आज दुखी हूँ मैं पर उसने भी तो इस जुदाई का गम उठाया है उसने अपने बेटी होने का फर्ज निभाया है बेवफा नही समझता आज मैं उसे जानता हूँ बहुत प्यार करती है वो मुझे पर देखो ज़िन्दगी ने ये कैसा वक्त आज दिखाया है आज उसके हाथ मे किसी ओर का हाथ आया है रोयी होगी शायद मुझे याद कर-कर के वो ओर उन आंसूँओ से उसने अपनी मेहन्दी का रंग ज़माया है कायर नही हूँ मैं जानती है वो कैसे बताऊ उसे इन आँखो मे मेने अपने दर्द को छूपाया है आज गर्व है मुझे मेरी जान पर उसने आज अपने बेटी होने का फर्ज निभाया है - ARMAAN KHAN garv