आओ दीप जलायें खुशियां है दिवाली की मस्ती माहौल में छाया है, पर यह जो हमने घर में अपने बत्ती चाइनीस लगाया है और खुद अपनी ज्योतिमय दिए की ज्वाला से अनभिज्ञ होकर, कितने दिवाली कर जेब खाली चीन को प्रचुर बनाया है पर वह जो दिया था मिट्टी का उस मिट्टी की सौंधी खुशबू, सोंधी खुशबू का था बहार; और हम सब देख रहे हैं कि, यह कुम्हारों के हाथों से भी, अब छीन लिया रोजगार कर दो बहिष्कार इस लाइट को अब सब, मैं करता हूं गुहार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ जगमग जगमग उस दिए की दृश्य बहुत ही प्यारी थी, नंगे पांव नन्हे बच्चों की होठों पर किलकारी थी; वो दिन बहुत ही मनमोहक था खुशियां थी अपार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार, बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ अब तो हम मिट्टी से बने ना घी के दिएजलाते हैं, ना ही अमावस्या की रात आंखों में काजल लगवाते हैं; भूल गए सब रीति रिवाज संस्कृति और परंपरा को, आधुनिकता की चाहत में महक ना पाए वसुंधरा को; ना जाने अब फिर वह कब होगा दौर सकार, बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्यौहार; बहुत सुहावन लगता था वह दीपों का त्योहार/ दीपों का त्योहार.....