@3 page शाम होने को थी उसने अपने सभी कौतूहल को थोडा शांत किया अगर! तुम्हें बुरा न लगे ??.. तो घर तक साथ चलूँ !!? मेरे हां या न की प्रक्रिया की प्रतीक्षा .किये बगैर वो अपनी ही मनकी ही चलाने में व्यस्त हो गया ।। तब तक वो कुछ कदम आगे निकल कर बोला अरे !!चलो भी इतना भी क्या सोच-विचार करना ??, मेरे हावभाव के सारे समीकरण बदल रहें थे मगर इसको उसने कोई खास तब्बजो नहीं दी।, मैंने तुनकमिज़ाजी से एसे ही बोल दिया ...... तुमको कहा था न मैनें मुझसे मिलने की बार बार कोशिशें बेकार है और इसके बावजूद तुम फिर यहां आ गये ।। थोड़ा नाराजगी भरे शब्दों से उसका भी ध्यान मेरी ओर फिर केंद्रीत हुआ, उसकी शरारती चमकती आखें सवाल पे जवाब न देकर एक सवाल और कर दिये क्यो??? पूरा शहर खरीद रखा हैं.... जो मैं तुम्हारे इलाके में घुसपैठियों बन गया हूँ, त्योरियां चढ़ता हुआ बोला।...... #story@3page