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वो मस्त मौला इंसान, वो बेपरबाह इंसान, अब खो गय


वो  मस्त मौला इंसान, वो  बेपरबाह इंसान, 
अब खो गया सा लगता है.. 
जिसको आसमाँ भी छोटा, जमीं भी कम लगती थी कभी
वो अब जिम्मेदारी कि किसी छोटी सी दुनिया में
सिमट कर रह गया है, 
सपने थे जिसके कभी, अपनो से ज्यादा कीमती
अब अपनो के खातिर सपनो का सौदा कर आया है

वो होता था जो नज़र में सबकी कभी, 
आज अपने खास से नजर अंन्दाज हो आया है 
क्या था, क्या है, क्या होगा कुछ पता नही उसको
दिन रात सब एक जैसे लगते है
तीज- त्यौहार,  सब फीके से लगते है, 
लगता है कुछ कम है, जो आँखे उसकी नम है, 
सबको खुश रखते रखते, 
अपना दुख छिपा आया है, 
 पता नही कहा, वो खुदको ही पीछे छोर आया है...

©Shivam rawat
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