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मेरी सांसों को हवाओं में बिखर जाना है, जिस्म को ख

मेरी सांसों को हवाओं में बिखर जाना है, 
जिस्म को खाक के तूदो में उतर जाना है

उसका सिद्दत से मुझे चाहना बतलाता है, 
चढते दरिया को बहुत जल्द उतर जाना है,

दूर रहने का इरादा कभी मिलने की तडप
यह समझ में नहीं आता कि किधर जाना है

छत पे फैली हुई इस धूप को मालूम नहीं 
दिन के ढलते ही दीवारों में उतर जाना है

प्यार करना कोई आसां नहीं है, रमजानी 
गहरे पानी के समन्दर में उतर जाना है,
28/10/15

©MSA RAMZANI गजल
मेरी सांसों को हवाओं में बिखर जाना है, 
जिस्म को खाक के तूदो में उतर जाना है

उसका सिद्दत से मुझे चाहना बतलाता है, 
चढते दरिया को बहुत जल्द उतर जाना है,

दूर रहने का इरादा कभी मिलने की तडप
यह समझ में नहीं आता कि किधर जाना है

छत पे फैली हुई इस धूप को मालूम नहीं 
दिन के ढलते ही दीवारों में उतर जाना है

प्यार करना कोई आसां नहीं है, रमजानी 
गहरे पानी के समन्दर में उतर जाना है,
28/10/15

©MSA RAMZANI गजल
mohdsamshadali7461

MSA RAMZANI

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