पथिक हूँ मैं मादरे वतन का खिलते है जहा हर रंग के फूल उस चमन का प्रेम और साैहार्द मैं फैलाता हूँ पर जब हाे गद्दाराे से सामना महाकाल बन जाता हूँ मैं अभिनन्दन हूँ,दुश्मन के घर में घूस कर,शेर की तरह दहाड़ाता हूँ पर अंकित बन कर अपने हीं, घर में पत्थर की मार खाता हूँ.... पर तुम कर लाे चाहे जितनी साजिश, तिरंगे की शान पर आंच न आने दूंगा मैं आशिक हूँ तिंरगे का ,अपना मुल्क, क्या पड़ाेसियाें के यहां भी लहराउंगा याद रखना दाेस्ताें- वतन पर मरने वाला ना सिक्ख हाेता है ना ईसाई ना हिंदुु ना मुसलमान वाे हाेता है सिर्फ और सिर्फ शान-ए-हिंन्दुस्तान🙏🙏🙏🙏🙏🙏 रचना विषय 27 - 'पथिक' 4 पंक्तियों की रचना कर प्रतियोगिता में भाग लें। विशेष:- आवश्यक नियम पिन पोस्ट के कैप्शन में पढ़ें। 🌠