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मन धीर है अधीर भी..मन बावरा मन शांत ..मन ही समझे म

मन धीर है अधीर भी..मन बावरा मन शांत ..मन ही समझे मन की व्यथा मन ही सुझाए निदान..मन है कभी ज्वाला भभकती तो  कभी  शांत जल के समान..मन बिखरे तो मोती के जैसे मन जोड़े जैसे जवारत...कभी चारों ओर दिखाए मौज कभी कीचड़ में खिलता सा सरोज..मन कभी थका हुआ तो कभी निडर..कभी नन्ही शिला तो कभी भूधर..मन द्वेष भी मन राग ही मन ही कभी और प्रीत है..मन चंचल मन भवरा सा मन ही मन का मीत है..कभी गीत भी संगीत भी मन ही कभी अश्रुओं की बहती धार है..मन जीत का मन हार का दोनों का ही आधार है।।
©mitalishrivastava #Man #poem #mylines 
#Star
मन धीर है अधीर भी..मन बावरा मन शांत ..मन ही समझे मन की व्यथा मन ही सुझाए निदान..मन है कभी ज्वाला भभकती तो  कभी  शांत जल के समान..मन बिखरे तो मोती के जैसे मन जोड़े जैसे जवारत...कभी चारों ओर दिखाए मौज कभी कीचड़ में खिलता सा सरोज..मन कभी थका हुआ तो कभी निडर..कभी नन्ही शिला तो कभी भूधर..मन द्वेष भी मन राग ही मन ही कभी और प्रीत है..मन चंचल मन भवरा सा मन ही मन का मीत है..कभी गीत भी संगीत भी मन ही कभी अश्रुओं की बहती धार है..मन जीत का मन हार का दोनों का ही आधार है।।
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