था कठिन बड़ा कुछ कर पाना। जब निकले कुछ आशा वादी। कुछ लिए हाथ में बंदूखें। कुछ डाल बदन अपने खादी। था मार्ग चुना अपना सबने। बन निकले थे जिसपर आंधी। वो राष्ट्र प्रेम में अमर हुए। हो चाहे भगत सिंह या गांधी। थी जान की अब परवाह किसे। हंसकर अपनी जान गवां दी। था लक्ष्य एक ही सबका तब। बस आज़ादी–बस आज़ादी। #आशुतोष_मिश्रा #Deshbhakti