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"कहाँ हैं वो लोग..." कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर

"कहाँ हैं वो लोग..."
कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर तेरा पीछा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

वो जो दिखते नहीं, मगर उनकी दख़लंदाज़ी दिखती है। 
वो जो होते नहीं, मगर हमेशा उनकी नाराज़गी होती है। 
कौन है वो लोग, जो अक़्सर तुझे रोका करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

सही, ग़लत का फ़ैसला, तुम नहीं वो लोग तय करते हैं। 
दर्द, ख़ुशी का पैमाना, उनकी नज़रों से मापा करते हैं। 
कैसे हैं वो लोग, जो अक़्सर तुझे परखा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

'लोग क्या सोचेंगे' से तुम नहीं, तुम्हारी सोच से उनका वजूद है। 
वो लोग आसपास नहीं, वो तुम्हारे अंदर मौजूद है। 
तुझसे हैं वो लोग, जो अक़्सर तेरा साया हुआ करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी जिंदगी को बेहाल करते हैं। 
कहाँ हैं वो लोग, जो अक़्सर तेरा पीछा...........।।
-संगीता पाटीदार पहली कविता तो नहीं, मगर बहुत पुरानी है। 

"कहाँ हैं वो लोग..." (Without Editing) 

कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर तेरा पीछा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

वो जो दिखते नहीं, मगर उनकी दख़लंदाज़ी दिखती है।
"कहाँ हैं वो लोग..."
कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर तेरा पीछा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

वो जो दिखते नहीं, मगर उनकी दख़लंदाज़ी दिखती है। 
वो जो होते नहीं, मगर हमेशा उनकी नाराज़गी होती है। 
कौन है वो लोग, जो अक़्सर तुझे रोका करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

सही, ग़लत का फ़ैसला, तुम नहीं वो लोग तय करते हैं। 
दर्द, ख़ुशी का पैमाना, उनकी नज़रों से मापा करते हैं। 
कैसे हैं वो लोग, जो अक़्सर तुझे परखा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

'लोग क्या सोचेंगे' से तुम नहीं, तुम्हारी सोच से उनका वजूद है। 
वो लोग आसपास नहीं, वो तुम्हारे अंदर मौजूद है। 
तुझसे हैं वो लोग, जो अक़्सर तेरा साया हुआ करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी जिंदगी को बेहाल करते हैं। 
कहाँ हैं वो लोग, जो अक़्सर तेरा पीछा...........।।
-संगीता पाटीदार पहली कविता तो नहीं, मगर बहुत पुरानी है। 

"कहाँ हैं वो लोग..." (Without Editing) 

कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर तेरा पीछा करते हैं। 
दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। 

वो जो दिखते नहीं, मगर उनकी दख़लंदाज़ी दिखती है।

पहली कविता तो नहीं, मगर बहुत पुरानी है। "कहाँ हैं वो लोग..." (Without Editing) कहाँ हैं वो लोग... जो अक़्सर तेरा पीछा करते हैं। दुनियादारी का डर दिखा, तेरी ज़िंदगी को बेहाल करते हैं।। वो जो दिखते नहीं, मगर उनकी दख़लंदाज़ी दिखती है। #yqbaba #YourQuoteAndMine #sangeetapatidar #tmkosh #हिन्दी_काव्य_कोश