उषा-दर्शन /अज्ञेय मैंने कहा डुब चांद । रात को सिहरने दे कुइंयो को मरने दे। अक्षितिज तन फ़ैल जाने दे। पर तम थमा और मुझी में जम गया। मैंने कहा उठ रे लजीली भोर -रश्मि, सोई दुनिया में तुझे कोर्इ देखे मत ,मेरे भीतर समा जा तू चुपके से मेरी ये हिमाकत नलिनी खिला जा तू। वो प्रगल्भा मानमयी बावली-सी उठ सारी में फ़ैल गई। ©trilokibhogta उषा-दर्शन #अज्ञेय