कैसे लिखूं, माॅ पर, निःशब्द हो जाता हूं मैं, ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं । कैसे लिखूं, माॅ पर, कोई शब्द ही नही, जो माॅ को परिभाषित कर सके । कैसे लिखूं, माॅ पर, माॅ के त्याग को, कोई परिभाषित कर सकता नही । कैसे लिखूं, माॅ पर, माॅ के दर्द को, कोई परिभाषित कर सकता नही । माॅ वो कल्पवृक्ष है, जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलजार है, नही तो ये जीवन, बेजान है । --विभूति गोण्डवी 7800044130 #मॉ