हम वफ़ा की ख़ैर मनाते है, बेवफ़ाई से डरते हैं। प्यार के पिंजरे में कैद पंछी है, बस रिहाई से डरते है। "रुद्र प्रताप सिंह" रिहाई से डरते हैं।