एक पंक्षी ही तो था मै उसकी खूबसूरत आंखो में कैद , ना आसमानों में उड़ने की चाह , ना उस कैद से रिहा होने का मन , लेकिन फिर ऐसा हुआ की हम अब उसके लिए हम , हम ना रहे , अब उसकी कैद में कैदी हो गए , और फिर उन्होंने मुझे रिहा कर दिया , यह कहकर की तुम्हे अब खुद में रहना चाहिए , खुद को खुद में जीना चाहिए , पर अब उसे कौन बताए , की मै खुद में तो जी लू, पर मै अब खुद कहा हूं ।