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रिश्तों से मन भर गया, रिश्ते बनाएं क्यों। छोड़ आए

रिश्तों से मन भर गया, रिश्ते बनाएं क्यों।
छोड़ आए तेरे दर को,तेरे दर पर आएं क्यों।।
दिल के अरमां कब के, दफ़ना दिये हमने।
रो चुके बहुत, खुद को फिर से रुलाएं क्यों।।
फूलों ने तो हमसे, वफ़ा की नहीं कभी।
कांटों ने थामा है दामन,दामन छुड़ाएं क्यों।।
ख़ामोशी बन गई है अब,अंदाज-ए-ज़िंदगी।
ख़ामोश ज़िंदगी में, हंगामा करें क्यों।।
ख़्वाब आंखों को कोई,भाता नहीं '#मोटी'।
नया ख़्वाब पलकों पर, कोई सजाएं क्यों।।

©Gaurav #IFPWriting
रिश्तों से मन भर गया, रिश्ते बनाएं क्यों।
छोड़ आए तेरे दर को,तेरे दर पर आएं क्यों।।
दिल के अरमां कब के, दफ़ना दिये हमने।
रो चुके बहुत, खुद को फिर से रुलाएं क्यों।।
फूलों ने तो हमसे, वफ़ा की नहीं कभी।
कांटों ने थामा है दामन,दामन छुड़ाएं क्यों।।
ख़ामोशी बन गई है अब,अंदाज-ए-ज़िंदगी।
ख़ामोश ज़िंदगी में, हंगामा करें क्यों।।
ख़्वाब आंखों को कोई,भाता नहीं '#मोटी'।
नया ख़्वाब पलकों पर, कोई सजाएं क्यों।।

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