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◆ वो बूढ़ी माँ अपने पोते के हाथों खाना खाती हु

     ◆ वो बूढ़ी माँ अपने पोते के हाथों खाना खाती हुई भिखारियों की पंक्ति में सबसे ज़्यादा संतुष्ट और प्रसन्न है --- क्योंकि आज जब उसने पहली बार अपने पोते के हाथों से खाना खाया तो उसे वही प्यार, दुलार और संस्कार की अनुभूति हुई, जो उसने अपनी परवरिश में अपने बच्चों की दी थी। शायद आज उसकी पेट की भूख से ज्यादा उसे उसकी मन की तृप्ति हुई होगी। ये सब देखकर उसकी बूढ़ी आँखें एक पल के लिए वो सारे दुःख दर्द भूल गई जो उसकी खुद की संतान ने उसे घर से निकालकर दिया था। एक बेटा अपने संस्कार, प्यार भूल सकता है लेकिन एक माँ कभी भी अपने प्यार और संस्कार भूलकर अपने बच्चों से नफरत नहीं कर सकती। इसीलिए तो कहा जाता है कि पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता।

◆ पर उस माँ की प्रसन्नता देख मेरा मन प्रसन्न नहीं हुआ --- क्योंकि उस बूढ़ी माँ ने जिन बच्चों को कभी उनके जीवन के पहले कदम उठाने में साथ दिया था उन्हें दिन रात खुद कष्ट सहकर उन्हें सुख दिया, उस संतान ने अपनी बूढ़ी माँ के जीवन के आख़िरी क़दमों में कभी उसका साथ नहीं दिया। यहाँ तक कि उसे उसके खुद के बनाये घर से बेघर कर दिया। पर याद रखना दोस्तों ऊपर वाले कि लाठी में आवाज़ नहीं होती और उसके घर देर है मगर अंधेर नहीं। कल जो आपने अपने माँ बाप के साथ किया है आज वही आपकी संतान भी आपके साथ करेगी, यही ज़िंदगी है। अपने कर्मों का फल हमे यही भुगतना है इसलिये कभी किसी का दिल मत दुखाना खासतौर से अपने माता पिता का कभी नहीं, क्योंकि ईश्वर को किसी ने नही देखा लेकिन जिसने हमें जीवन दिया वो ईश्वर से भी बढ़कर है। 
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आइए लिखते हैं #ख़यालोंकीउथलपुथल 

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     ◆ वो बूढ़ी माँ अपने पोते के हाथों खाना खाती हुई भिखारियों की पंक्ति में सबसे ज़्यादा संतुष्ट और प्रसन्न है --- क्योंकि आज जब उसने पहली बार अपने पोते के हाथों से खाना खाया तो उसे वही प्यार, दुलार और संस्कार की अनुभूति हुई, जो उसने अपनी परवरिश में अपने बच्चों की दी थी। शायद आज उसकी पेट की भूख से ज्यादा उसे उसकी मन की तृप्ति हुई होगी। ये सब देखकर उसकी बूढ़ी आँखें एक पल के लिए वो सारे दुःख दर्द भूल गई जो उसकी खुद की संतान ने उसे घर से निकालकर दिया था। एक बेटा अपने संस्कार, प्यार भूल सकता है लेकिन एक माँ कभी भी अपने प्यार और संस्कार भूलकर अपने बच्चों से नफरत नहीं कर सकती। इसीलिए तो कहा जाता है कि पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता।

◆ पर उस माँ की प्रसन्नता देख मेरा मन प्रसन्न नहीं हुआ --- क्योंकि उस बूढ़ी माँ ने जिन बच्चों को कभी उनके जीवन के पहले कदम उठाने में साथ दिया था उन्हें दिन रात खुद कष्ट सहकर उन्हें सुख दिया, उस संतान ने अपनी बूढ़ी माँ के जीवन के आख़िरी क़दमों में कभी उसका साथ नहीं दिया। यहाँ तक कि उसे उसके खुद के बनाये घर से बेघर कर दिया। पर याद रखना दोस्तों ऊपर वाले कि लाठी में आवाज़ नहीं होती और उसके घर देर है मगर अंधेर नहीं। कल जो आपने अपने माँ बाप के साथ किया है आज वही आपकी संतान भी आपके साथ करेगी, यही ज़िंदगी है। अपने कर्मों का फल हमे यही भुगतना है इसलिये कभी किसी का दिल मत दुखाना खासतौर से अपने माता पिता का कभी नहीं, क्योंकि ईश्वर को किसी ने नही देखा लेकिन जिसने हमें जीवन दिया वो ईश्वर से भी बढ़कर है। 
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