अब तो बिस्तर भी खफा हो कर कहने लगे, ओ गश्त में गाफिल सिपाही,जब सोना नहीं था तो बिछाया क्यों था। जबाब दिया मैंने बिस्तर को,,,,जा एक एहसान कर दे, शहर की सलामती के लिए नींदे कुर्बान करने दे मुझे,जो फैला रहे हैं नफरतें नींद उनकी आंखो में भर दे, सो लूंगा में भारत मां की गोद में,तिरंगे में लिपटकर,जो खेल रहे हैं अमन से हवश उनकी पूरी कर दे। सिपाही का बिस्तर