पन्ने पलट के लावारिश छोड देते हैं मुझे मानो सुबह का अखबार हो गया हु मैं ।। देखा अनदेखा सा तमाशों के बीच बस एक इश्तिहार भर रह गया हु मैं ।। जमीन प्यासी रहे आसमां भी ना हो हल्का बारिश की एक ऐसी बौछार हो गया हुँ मैं।। बेख्याली से फेके कुछ सिक्के सीने पर सड़क के उस ओर हो वो मजार हो गया हुँ मैं ।। छुपाय फिरता था उसके दामन मे गैरत देखीये ना आज सरे बाजार हो गया हुँ मैं ।। #मौहम्मद अनीश #Chand_tuta_tara_pighla