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जीवन के अलग-अलग पड़ावों पर हम सभी ने अपने भीतर प



जीवन के अलग-अलग पड़ावों पर हम सभी ने अपने भीतर प्रेम की मिठास का अनुभव किया है। क्या है प्रेम? क्या यह किसी व्यक्ति विशेष को पाने पर पैदा होता है? ऐसा क्यों है कि प्रेम में पीड़ा भी आनंद देने लगती है? क्या प्रेम आपको बंधन में डाल सकता है?

जानिए सद्‌गुरु का क्या कहना है प्रेम के बारे में इन सरल और छोटे कोट्स के रूप में...

प्रेम कोई काम नहीं बल्कि एक गुण है।

 केवल वे ही लोग, जो अपने दिमाग का कचरा किनारे रख सकते हैं, वास्तव में प्रेम और करुणा के काबिल होते हैं।

प्रेम कोई सहूलियत का साधन नहीं है। यह खुद को मिटाने की एक प्रक्रिया है।



जो भी शर्तों पर आधारित है, वह प्रेम नहीं है।

प्रेम कोई ऐसी चीज नहीं हैए जो आप करते हैंए बल्कि जो आप स्वयं हैं।

जो लोग एक दूसरे से सचमुच बहुत प्रेम करते हैं, वही लोग प्रियजन को खो देने के बाद भी हालात को शालीनतापूर्वक सम्हाल पाएंगे।

प्रेम कोई रिश्ता नहीं है। प्रेम तो भावनाओं की एक तरह की मिठास है।



 

प्रेम की गहराई को जानने के लिए आपके कम-से-कम कुछ अंश को मिटना होगा। वरना किसी दूसरे के लिए जगह नहीं होगी।

ख़ुशी, शांति और प्रेम – ये कोई आध्यात्मिक लक्ष्य नहीं हैं। यह सब तो समझदारीपूर्वक जीने की शुरुआत है।

 मूल रूप में, प्रेम का अर्थ हैः पसंदों और नापसंदों से ऊपर उठ जाना।

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