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दिनों बाद आज फिर से कलम डोली है, अपने शब्दों में क

दिनों बाद आज फिर से कलम डोली है, अपने शब्दों में कुछ दुनिया से बोली है।
चिंगारी शोला बन जाती है, जवानी शोलों को भी तड़पाती है।
अकेला तारा भी आसमां में जगमगाता है, सूर्य कहते उसे कोई आंख मिला नही पाता है।
जीवन मे हार नहीं कोई शब्द धरा, 
जज्बा है जीवन का सहरा।
बिन स्याही कोई कलम नहीं, बिन श्रम जीवन आधार नहीं।
स्याही से ही इतिहास लिखा, श्रम द्वारा ही ब्रह्माण्ड रचा।
गढ़ दे ब्रह्माण्ड नया इक तू, ताकत श्रम की दिखला दे तू।
दिनों बाद आज फिर से कलम डोली है, अपने शब्दों में कुछ दुनिया से बोली है।
चिंगारी शोला बन जाती है, जवानी शोलों को भी तड़पाती है।
अकेला तारा भी आसमां में जगमगाता है, सूर्य कहते उसे कोई आंख मिला नही पाता है।
जीवन मे हार नहीं कोई शब्द धरा, 
जज्बा है जीवन का सहरा।
बिन स्याही कोई कलम नहीं, बिन श्रम जीवन आधार नहीं।
स्याही से ही इतिहास लिखा, श्रम द्वारा ही ब्रह्माण्ड रचा।
गढ़ दे ब्रह्माण्ड नया इक तू, ताकत श्रम की दिखला दे तू।