दूर कहीं पहाड़ी पर एक गांव में, बसता है मन मेरा, घनघोर पेड़ों की कतार में, सीढ़ी नुमा खेतों के संसार में टेढ़े मेढ़े रास्तों के प्यार में हर आंगन में झुके मीठे फलों के पेड़ों में, चूल्हे में पकते स्वादिष्ट भोजन में, भले लोगों के होंठों में, गूंजते गीतों में, खेतों में कामकाजी औरतें गुनगुनाती, 'उनके संगीत में, चरने जाती गाय के गले में, घंटी के स्वरों में, तारों से भरी सर्द रातों में, पूनम की चांद में नहायी प्रकृति में, हर मानुष के हृदय में चाह रहती है, फुर्सत मिले तो एक राह रहती है, चल पड़ेंगे बंजारे बनके "उन ख्वाबों को तितली बन के छू लेंगे,, पंख लिए उड जायेगे कहीं दूर उन वादियों में ,,, "दूर कहीं पहाड़ी पर एक गांव में, बसता है मन मेरा,