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संगीत

संगीत

                                                    धमार
 अंग्रेज़ी: धमार   DHAMAR 
एक विशेष गायन शैली है जिसकी उत्पत्ति में ब्रज का बहुत महत्त्व है। होरी गायन का प्रचलन ब्रज के क्षेत्र में लोक-गीत के रूप में बहुत काल से चला आता है। इस लोकगीत में वर्ण्य-विषय राधा-कृष्ण के होली खेलने का रहता था। रस श्रृंगार था और भाषा थी ब्रज। ग्रामों के उन्मुक्त वातावरण में द्रुत गति के दीपचंदी, धुमाली और कभी अद्धा जैसी ताल में युवक-युवतियों, प्रौढ़ और वृद्धों, सभी के द्वारा यह लोकगीत गाए और नाचे जाते थे। ब्रज के संपूर्ण क्षेत्र में रसिया और होली जन-जन में व्याप्त है। लोक संगीत ही परिष्कृत होकर शास्त्रीय नियमों में बंध जाता है, तब शास्त्रीय संगीत कहलाता है। देशी गान, भाषा गान, धमार गान, ठुमरी आदि इसके उदाहरण हैं। लोक संगीत जन-जन की भावना का प्रतीक है।
 गत एक शताब्दी में धमार के श्रेष्ठ गायक नारायण शास्री, धर्मदास के पुत्र बहराम ख़ाँ, पं. लक्ष्मणदास, गिद्धौर वाले मोहम्मद अली ख़ाँ, आलम ख़ाँ, आगरा के ग़ुलाम अब्बास ख़ाँ और उदयपुर के डागर बंधु आदि हुए हैं। ख़्याल गायकों के वर्तमान घरानों में से केवल आगरा के उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ नोम-तोम से अलाप करते थे और धमार गायन करते थे।

©Mallika #धमार 

#Nature
संगीत

                                                    धमार
 अंग्रेज़ी: धमार   DHAMAR 
एक विशेष गायन शैली है जिसकी उत्पत्ति में ब्रज का बहुत महत्त्व है। होरी गायन का प्रचलन ब्रज के क्षेत्र में लोक-गीत के रूप में बहुत काल से चला आता है। इस लोकगीत में वर्ण्य-विषय राधा-कृष्ण के होली खेलने का रहता था। रस श्रृंगार था और भाषा थी ब्रज। ग्रामों के उन्मुक्त वातावरण में द्रुत गति के दीपचंदी, धुमाली और कभी अद्धा जैसी ताल में युवक-युवतियों, प्रौढ़ और वृद्धों, सभी के द्वारा यह लोकगीत गाए और नाचे जाते थे। ब्रज के संपूर्ण क्षेत्र में रसिया और होली जन-जन में व्याप्त है। लोक संगीत ही परिष्कृत होकर शास्त्रीय नियमों में बंध जाता है, तब शास्त्रीय संगीत कहलाता है। देशी गान, भाषा गान, धमार गान, ठुमरी आदि इसके उदाहरण हैं। लोक संगीत जन-जन की भावना का प्रतीक है।
 गत एक शताब्दी में धमार के श्रेष्ठ गायक नारायण शास्री, धर्मदास के पुत्र बहराम ख़ाँ, पं. लक्ष्मणदास, गिद्धौर वाले मोहम्मद अली ख़ाँ, आलम ख़ाँ, आगरा के ग़ुलाम अब्बास ख़ाँ और उदयपुर के डागर बंधु आदि हुए हैं। ख़्याल गायकों के वर्तमान घरानों में से केवल आगरा के उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ नोम-तोम से अलाप करते थे और धमार गायन करते थे।

©Mallika #धमार 

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