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नन्ही सी कलाई पर जब मैंने राखी बाँधी थी याद हैं मु

नन्ही सी कलाई पर जब मैंने राखी बाँधी थी याद हैं मुझे वो उतारने को उतावला हो गया था ,हाथो में उलझी डोरियों को देख वो लड्डू भी नही खाया था ,बड़ी बड़ी उन आंखों में उस दिन आशू भी आया था।

हो गया हैं अब,थोड़ा बड़ा वो ,राखी का इंतज़ार भी करता हैं ,सबसे सुंदर राखी को हफ़्तों संजोये रखता हैं।
अपनी कलाइयों को बार बार वो निहारता हैं, मेरा छोटा  सा भाई अब थोड़ा बड़ा सा लगता हैं।। छोटू
नन्ही सी कलाई पर जब मैंने राखी बाँधी थी याद हैं मुझे वो उतारने को उतावला हो गया था ,हाथो में उलझी डोरियों को देख वो लड्डू भी नही खाया था ,बड़ी बड़ी उन आंखों में उस दिन आशू भी आया था।

हो गया हैं अब,थोड़ा बड़ा वो ,राखी का इंतज़ार भी करता हैं ,सबसे सुंदर राखी को हफ़्तों संजोये रखता हैं।
अपनी कलाइयों को बार बार वो निहारता हैं, मेरा छोटा  सा भाई अब थोड़ा बड़ा सा लगता हैं।। छोटू

छोटू